बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह और पत्रकारों के बीच हुई तू तू मैं मैं

 

🤔पत्रकारों का बढ़ता रोष देख स्वतंत्रदेव सिंह ने जोड़े हाथ

✍🏻झांसी में भाजपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की प्रेस वार्ता के दौरान मुँह देखा व्यवहार किया जा रहा है तो प्रेसवार्ता में पत्रकारों ने हंगामा कर दिया।

👉🏻दरअसल,सीएए,एनआरसी,एनपीआर,के बारे में बताने के लिए पार्टी के कार्यालय में प्रदेश अध्यक्ष की प्रेस कॉन्फ्रेंस आमंत्रित की गयी थी। इसके लिए पार्टी के मीडिया प्रभारी द्वारा बकायदा सभी छोटे,बड़े अखबारों, इलैक्ट्रानिक मीडिया चेनल्स आदि के जिला मुख्यालय में स्थित संवाददाताओं को आमंत्रित किया गया था।
जिसके चलते पार्टी कार्यालय में मीडिया कर्मियों से रू-ब-रू होते हुए प्रदेश अध्यक्ष ने सीएए,एनपीआर, एनआरसी पर लम्बा चौड़ा प्रवचन दिया और कांग्रेस सहित सपा, बसपा आदि विपक्षी पार्टियों को निशाने पर रखते हुए जम कर कोसा उनके नेताओं को झूठों का सरदार बता कर खबरों की हेड लाइन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी बात समाप्त होने के बाद जब पत्रकारों के सवालों की बौछार शुरू हुई तो प्रदेश अध्यक्ष एक-दो के जवाब दिए वो भी न समझ में आने वाले उत्तर देकर उठने लगे।और तीन नामचीन अखबारों को बुला कर बात करने को कहा तो हंगामा बढ़ गया। पत्रकारों ने इसे पक्षपात निरूपित करते हुए प्रदेश अध्यक्ष को कठघरे में खड़ा कर सवाल दागना शुरू कर दिये। स्थिति बिगड़ते देख कर सदर विधायक रवि शर्मा ने मोर्चा सम्भाला और पत्रकारों के बीच पहुंच कर पत्रकारों को शान्त कराने में जुट गए।

👉🏻विधायक के प्रयासों पर पत्रकारों का आवेश मंद तो पड़ा, किन्तु उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष के मीडिया के साथ भेदभाव पर सवालिया निशान लगाते हुए अपना पक्ष रखा कि यदि तीन अखबारो से ही बात करनी थी तो सभी को क्यों बुलाया गया था। इसका बात का विधायक के पास कोई जवाब नहीं था।

👉🏻पत्रकारों का कहना था कि प्रदेश अध्यक्ष की पक्षपात पूर्ण नीति ने साबित कर दिया कि भाजपा के नेताओं की कथनी व करनी में फर्क है। इसी लिए प्रदेश के ये हाल है और इसी बर्ताव के चलते महाराष्ट्र में सत्ता से बीजेपी को हाथ धोना पड़ा और आने वाल 2022 के चुनाव में प्रदेश में भी यही हाल होगा।

(एक नजर)
👉🏻पत्रकारिता की आवाज को दबाने के लिए बीजेपी सरकार ने लगभग 150 मीडिया हाउसों में ताले लगवा दिए है।जिसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ेगा।

*रिपोर्ट:अरुण वर्मा झाँसी*

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