देव। ब्राह्मांड के इकलौते ऐसे देवता जिन्हें हम खुली आंखों से देख सकते हैं, जिनके ताप को महसूस कर सकते हैं और जिनकी किरणें सब पर एक समान पड़ती हैं, उन भगवान सूर्यदेव के मंदिर के बारे में अगर कोई आपसे पूछे तो आपके दिमाग में ओडिशा के कोणार्क मंदिर का ख्याल आता होगा. लेकिन ओडिशा के मंदिर के अलावा देश में एक और ऐसा मंदिर मौजूद है जो पहला ऐसा मंदिर है, जिसके दरवाजे पूरब नहीं बल्कि पश्चिम की ओर खुलते हैं.
छठ पूजा में पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु
बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित इस मंदिर का इतना महत्व है कि छठ के वक्त लाखों श्रद्धालू यहां मंदिर में मत्था टेकने आते हैं, भगवान सूर्यदेव के दर्शन के लिए आते हैं. छठ के अलावा हर सप्ताह के रविवार के दिन यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ पड़ती है.

औरंगाबाद जिले से 20 किलोमीटर दूर देव में यह मंदिर स्थापित है. इस मंदिर को त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख सूर्यमंदिर भी कहते हैं.
भगवान विश्वकर्मा ने किया है मंदिर का निर्माण
कहते हैं कि त्रेतायुग में भगवान विश्वकर्मा ने स्वंय इसे अपने हाथों से बनाया था. एक रात में ही भगवान विश्वकर्मा ने इस मंदिर का निर्माण कर दिया था. मंदिर के गर्भगृह में ब्राह्मा, विष्णु और महेश की प्रतिमा स्थापित है तो वहीं मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश स्थापित है. साथ ही मंदिर में कई दुर्लभ प्रतिमाएं भी हैं. मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर एक तालाब भी है, जहां स्नान करने मात्र से कुष्ठ रोग ठीक हो जाते हैं, ऐसी मान्यता है. इस तालाब की खुदाई देव के राजा ने करवाई थी और उनका कुष्ठ रोग भी ठीक हो गया था.


औरंगजेब ने की थी मंदिर में जाने की कोशिश

इस मंदिर के बारे में एक और कहानी काफी प्रचलित है. कहते हैं कि अपने शासनकाल में औरंगजेब जब मंदिरों को तोड़ता हुआ आगे बढ़ रहा था तो वह देव में स्थित इस सूर्य मंदिर के पास भी पहुंचा. जहां उसने जूते पहनकर मंदिर के अंदर अपने सिपाहियों के साथ जाने की कोशिश की. वहां मौजूद पुजारियों ने औरंगजेब को रोका तो उसके सिपाही तलवार निकालकर पुजारी को मारने दौड़े. उसी दौरान मंदिर के गेट पर ही एक सांप फूंफकार मारता दिखाई दिया.
ऐसे पूरब से पश्चिम हुआ था मंदिर का दरवाजा
जिसके बाद सांप को देखकर और पुजारियों की विनती पर औरंगेजब मान गया और उसने कहा कि अगर रात भर में इस मंदिर के दरवाजे पूरब से पश्चिम की ओर हो जाते हैं तो मैं इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुचाऊंगा और वापस लौट जाऊंगा. ऐसा कहकर औरंगजेब ने मंदिर के बाहर ही डेरा डाल दिया.
पुजारी रात भर भगवान सूर्यदेव से प्रार्थना करते रहे और सुबह देखा तो वाकई मंदिर के दरवाजों की दिशा बदल गई थी. तभी से कहते हैं कि यह देश का इकलौता ऐसा सूर्य मंदिर है जिसके दरवाजे पूरब नहीं बल्कि पश्चिम की ओर हैं, और औरंगजेब को खाली हाथ लौटना पड़ा.

यहां अचला सप्तमी के दिन रथ यात्रा भी निकाली जाती है और दो दिवसीय देव सूर्य महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें देश के बड़े-बड़े कलाकार अपनी प्रस्तुति देते हैं।

साभार:वेद गुप्ता