क्या अपने ही देश के खिलाफ बोलना अभिव्यक्ति की आजादी है?

आखिर वामपंथी, कांग्रेस और केजरीवाल किधर ले जाना चाहते हैं देश को।

28 फरवरी को दिल्ली की सड़कों पर अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर विद्यार्थियों की नारेबाजी होती रही। वामपंथी विचारधारा की स्टूडेंट यूनियन आइसा के आह्वान पर सड़कों पर मार्च भी निकाला। इस मार्च का समर्थन कांग्रेस से जुड़े एनएसयूआई और आम आदमी पार्टी से जुड़ें छात्र संगठनों ने भी किया। लोकातांत्रिक व्यवस्था में विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार सबको है, लेकिन यदि कोई विरोध अपने उद्देश्य को लेकर किया जाए तो फिर ऐसे विरोध पर सवाल तो उठेंगे ही। 28 फरवरी को आइसा के छात्रों ने जिस गुरमेहर कौर के समर्थन में मार्च निकाला, उस छात्रा गुरमेहर ने सुबह ही स्वयं को इस मार्च से अलग कर लिया। गुरमेहर रातों रात तब सुर्खियों में आई, जब उसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इस वीडियो में गुरमेहर का कहना था कि उसके पिता कैप्टन मंदीप सिंह को पाकिस्तान ने नहीं मारा बल्कि जंग में मौत हुई थी। कैप्टन मंदीप कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे। सब जानते हैं कि कारगिल युद्ध पाकिस्तान की सेना ने ही लड़ा था, इसके बावजूद भी गुरमेहर ने किस सोच के साथ अपनी बात कही, यह जांच का विषय हो सकता है। लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठता है कि क्या अपने देश के खिलाफ बोलना ही अभिव्यक्ति की आजादी है? पहले जेएनयू में और फिर विगत दिनों दिल्ली के रामजस कॉलेज में जिस तरह से देश विरोधी नारे लगे उससे प्रतीत होता है कि कुछ लोग हमारे ही देश के खिलाफ माहौल खड़ा करना चाहते हैं। बार बार यह सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर राष्ट्रवाद की क्या परिभाषा है? 

समझ में नहीं आता कि सवाल उठाने वाले लोग आखिर इस देश को किधर ले जाना चाहते हैं। सीमा पर खड़ा हमारा जवान देश को सुरक्षित रखने के लिए अपनी जान गवा रहा है तो दूसरी ओर दिल्ली में खुलेआम राष्ट्र विरोधी नारे लग रहे हैं। यदि राष्ट्रवाद को समझना है तो फिर ऐसे नेताओं और छात्रों को देश की सीमा पर जाकर खड़ा होना पड़ेगा। पूरी दुनिया में भारत एक ऐसा मुल्क होगा, जहां देश के खिलाफ नारे लगाने वाले ही अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर प्रदर्शन कर रहे है। यह माना कि राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल की नरेन्द्र मोदी से राजनीतिक दुश्मनी है और इसलिए ये दोनों नेता वामपंथी स्टूडेंट यूनियन के समर्थन में खड़े हो गए।

 राहुल गांधी और केजरीवाल का राजनीतिक विरोध देश के खिलाफ नारे लगाने वालों को मदद करे तो इसे कभी भी राष्ट्रहित में नहीं कहा जा सकता। जहां तक विद्यार्थी परिषद के छात्रों का सवाल है तो उनका विरोध अभिव्यक्ति की आजादी के खिलफ नहीं है, बल्कि शिक्षा परिसरों में जो देश विरोधी माहौल है उसके खिलाफ है। ऐसा नहीं की जेएनयू, डीयू, रामजस कॉलेजों में पहली बार देश विरोधी नारे लगे हो, लेकिन पिछले कुछ दिनों से जब ऐसे नारों को सोशल मीडिया के जरिए उजागर किया गया तो हालातों का पता चला। 

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