उरई(जालौन)। दृढ़ संकल्प के धनी सरदार ऊधम सिंह ने 21 साल बाद जलियांवाला नर संहार का बदला लिया,13 मार्च 1940 को लन्दन में सरदार ऊधम सिंह ने जलियांवाला नरसंहार के दोषी माइकेल ओडायर को गोली मार कर इस हत्यारे का काम तमाम कर दिया था।
नागरिक परिषद की रीना त्रिपाठी ने बताया कि सरदार उधम सिंह 13 अप्रैल 1919 को घटित जालियावाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियावाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओश्डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने इस ध्येय को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना ध्येय को पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली।

भारत के यह वीर क्रांतिकारी, माइकल ओश्डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगे। उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओश्डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके। बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओश्डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओश्डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई और उन्होंने अमरत्व प्राप्त किया।