‘मन से मैं माधुरी हो गई, प्रीत की गागरी हो गई: कवियत्री रुचि बाजपई

मोहब्बत का पैगाम मैं तुझमें कुछ इस तरह से समा जाऊं, आइना तू देखे और नजर मैं आऊं
जालौन। ‘मन से मैं माधुरी हो गई, प्रीत की गागरी हो गई। जाना जब प्रेम के अर्थ को, मीरा सी बावरी हो गई।।’ यह पंक्तियां श्रीबाराहीं देवी मेला एवं विकास प्रदर्शनी में कवियत्री रुचि बाजपई ने पढ़ीं।
श्रीबाराही देवी मेला एवं विकास प्रदर्शनी में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन की शुरूआत ब्लाक प्रमुख रामराजा निरंजन, जालौन सेवा समिति के अध्यक्ष रामशरण विश्वकर्मा, महेंद्र पाटकार मृदुल, प्रदुम्न दीक्षित इटहिया एवं मेला अधिकारी देवेंद्र कुमार द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन कर किया गया। कवियत्री ऋतु चतुर्वेदी ‘ऋतु’ ने पढ़ा ‘‘शाम सुबहा तलाश करती हूं, तुझसे मिलने की आस करती हूं। गोपियों की तरह निधिवन में, रोज आकर रास करती हूं।।’’ हास्य वयंग्य के कवि हरनाथ सिंह चैहान बामौर ने पढ़ा ‘वो वालीं इतिहास यहां पर मैं भी तो गढ़ सकती हूं, नारी अस्मिता के दुश्मन की छाती पर मैं भी तो चढ़ सकती हूं। प्रिया श्रीवास्तव ‘दिव्यम’ ने पढ़ा ‘प्रीत की रीत आकर निभा जाओ तुम, मैं बनूं इक गजल गुनगुना जाओ तुम।’ शफीक उर्रहमान कस्फी ने गरीबी पर वार करते हुए कहा ‘गरीबी ऐसे रुखसत हो रही है, निवालों पर सियासत हो रही है।। कवियत्री रूचि बाजपेई ने पढ़ा ‘मन से मैं माधुरी हो गई, प्रीत की गागरी हो गई। जाना जब प्रेम के अर्थ को, मीरा सी बावरी हो गई।।’ कवि अंचल शर्मा ने ‘तनहाइयां हमारी मिटाने नहीं आते, उनके बगैर मौसम सुहाने नहीं आते’ पढ़ा। डॉ. रवि शाक्या ‘कांत’ ने पढ़ा ‘करते रहे तमाम उम्र हम नेकियां, जरा सा खुदगर्ज हुए तो बेसहारा हो गए।’ कवि रिंकू पांचाल ने मोहब्बत का पैगाम देते हुए कहा ‘मैं तुझमें कुछ इस तरह से समा जाऊं, आइना तू देखे और नजर मैं आऊं।’ संजीव ‘सरस’ ने भी कहा ‘चलो यादों में सही, वो मेरे साथ तो हैं। मैं अब तलक नहीं भूला, इसमें कुछ बात तो है।’ भास्कर सिंह ‘मणिक’ ने देश प्रेम का इजहार करते हुए कहा ‘जिसे अपनी मातृभूमि से प्यार नहीं है, वो गद्दार हैं देश के बफादार नहीं हैं।’ इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए हसरत कोंचवी ने कहा ‘हम जश्न अपनी मौत का ऐसे मनाएंगे, मरने के पहले घर में तिरंगा लगाएंगे।’ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे रामकृपाल पांचाल ने जाति धर्म पर वार करते हुए पढ़ा ‘ राष्ट्रप्रेम भावना से श्रेष्ठ नहीं सम्प्रदाय, वांछनीय राष्ट्रधर्म नीति होनी चाहिए।’ कार्यक्रम का संचालन महेंद्र पाटकार ‘मृदुल’ ने किया।
फोटो परिचय-जालौन श्रीबाराहीं देवी मेला में काव्य पाठ करती कवियत्री
फोटो नंबर- 4

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