मां का प्यार, पिता का गुस्सा, दोस्तों का साथ है फिल्म की कहानी

क़लमकार। फिल्म की कहानी में एक बच्चे के लिए उसकी मां का प्यार है, पिता का गुस्सा है और दोस्तों का साथ है। फिल्म एक बच्चे की नजरों से दुनिया को देखती है और उसकी ये नजरे कब दर्शकों की हो जाती हैं, सिरिल मॉरिन का बैकग्राउंड स्कोर हर दृश्य को प्रभावी बनाता है। फिल्म में एक गीत है ‘छोरा कमाल है’, यह इस बात का संकेत है कि फिल्म यह धमाल है। गुजराती फिल्म ‘द लास्ट फिल्म शो’ को ऑस्कर पुरस्कार 2023 के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया है। फिल्म को साल की दो बड़ी हिट फिल्मों ‘ट्रिपल आर’ और ‘कश्मीर फाइल्स’ के ऊपर वरीयता दी गई है। ओटीटी प्लेटफॉर्म के बाद अब यह फिल्म बड़े पर्दे पर रिलीज हो गई है।

भाविन और भावेश का अभिनय, फ़िल्म को अमर बनाता है। फिल्म का मुख्य पात्र ‘समय’ जिद्दी है, जिज्ञासु है, हिम्मती है और अपने दोस्तों का लीडर है। इसको निभाने वाले बाल कलाकार भाविन रबरी ने कमाल का अभिनय किया है। बच्चों की तरह खुल कर थिरकना हो या बच्चों की तरह गुस्सा हो जाना, भाविन ने अपने हाव भावों से दर्शकों का दिल जीत लिया है। भाविन की मां बनी ऋचा मीना हिंदी फिल्मों में इतना बड़ा नाम नही हैं। बॉलीवुड फिल्मों के दर्शक उन्हें ‘कसाई’ और ‘डैडी’ जैसी फिल्मों में देख चुके हैं, ऋचा इस फिल्म में मातृत्व की भावना शानदार तरीके से दिखाने में कामयाब रही हैं। दीपेन रावल गुजराती फिल्मों में काम करते रहे हैं और गरीब पिता के किरदार को उन्होंने पूरी तरह से जीवंत किया है।
भावेश श्रीमाली ने सिनेमाघर के एक कर्मचारी के किरदार निभाया है और निसन्देह फिल्म के मुख्य कलाकार भाविन के बाद उन्होंने अपने अभिनय से सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। कहानी में भाविन के साथ फिल्मों का आनन्द लेने वाले हर दृश्य में वह शानदार लगे हैं। अन्य बाल कलाकारों ने भी अपने अभिनय और मासूमियत से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई है।

शुरुआत देखकर ही लगता है कि फ़िल्म में कुछ तो खास है। फिल्म ‘द लास्ट फ़िल्म शो’ के शुरुआती कुछ पल देख कर ही आपको लग जाएगा कि इस फिल्म में कुछ खास है। फिल्म गुजराती में है लेकिन यह हिंदी भाषी दर्शकों को आसानी से समझ में आती है क्योंकि इसमें बहुत कम संवाद हैं और इसके दृश्य बोलते हैं। स्क्रीन पर जो कुछ भी दिखता है वो शानदार, वास्तविक और बचपन से जुड़ा हुआ लगता है। द लास्ट फिल्म शो की कहानी एक सपने की है, ऐसा सपना जो ‘समय’ नाम का एक बच्चा अपनी खुली आंखों से देखता है। इस फिल्म में समय के बचपन की संघर्ष भरी यात्रा दिखाई गई है। फिल्म की कहानी में एक बच्चे के लिए उसकी मां का प्यार है, पिता का गुस्सा है और दोस्तों का साथ है। फिल्म एक बच्चे की नजरों से दुनिया को देखती है और उसकी ये नजरे कब दर्शकों की हो जाती हैं, इसका उन्हें भी पता नही चलता।
द लास्ट फिल्म शो का अंत भावुक करने के साथ भविष्य की उम्मीद भी दिखाता है। यह दिखाता है कि बच्चे जो चाहें उन्हें करने देना चाहिए, इसी में उनका भला है।

छायांकन और संगीत में जादू है। फ़िल्म में छायांकन स्वप्निल एस सोनवणे और संगीत सिरिल मॉरिन का है। दोनों ने निर्देशक पान नलिन के साथ पहले भी ‘एंग्री इंडियन गॉडेसेस’ फिल्म में साथ काम किया है।
‘सेक्रेड गेम्स’ वेब सीरीज के लिए सर्वश्रेष्ठ छायाकार का अवॉर्ड जीते हुए, स्वप्निल ने द लास्ट फ़िल्म शो के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है। ऋचा मीना जब भाविन के लिए विभिन्न व्यंजन बनाती और पैक करती है, उसे ऐसे दिखाया गया है कि दर्शकों को मां के खाने की याद आने लगेगी। सब्जी,मूली,रोटी,मिर्च और फिर उन्हें कपड़े में बंद कर देना। यह दर्शकों की यादों में रह जाता है।
चलती ट्रेन में कांच की रंगीन बोतल से बाहर देखना, बच्चों की नीरस दुनिया मे रंग भरता हुआ लगता है।
पानी के बीच खड़े पेड़ वाला दृश्य, फ्रेम में सँजोकर घर की दीवार पर टांगने लायक है। सिरिल मॉरिन का बैकग्राउंड स्कोर हर दृश्य को प्रभावी बनाता है। फिल्म में एक गीत है ‘छोरा कमाल है’, यह इस बात का संकेत है कि फिल्म यह धमाल है।

शानदार दृश्यों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करते निर्देशक पान नलिन। फिल्म के निर्देशक पान नलिन बहुत सी शानदार फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं, जिनमें साल 2001 में आई ‘समसारा’ और साल 2015 में आई ‘एंग्री इंडियन गॉडेसेस’ शामिल हैं। इन दोनों फिल्मों को बहुत से अंतरराष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से नवाजा गया था।
निर्देशक द्वारा द लास्ट फिल्म शो फिल्म के हर दृश्य को बेहद खूबसूरती के साथ रचा गया है। फिल्म के एक दृश्य में उन्होंने बच्चों के सपनों को माचिस के डिब्बों के जरिए दिखाने की कोशिश करी है, यह प्रयास वाकई में बेहद ही शानदार रचनात्मकता का उदाहरण है। फिल्म में गांव के दृश्यों की भरमार है पर जैसे ही शहर सामने आता है तो उससे शहर की चमकदमक दर्शकों की आंखों पर भी पड़ती है। दीपेन रावल का घर सिर्फ ईंटों का ढांचा भर है और यह गरीबों की दशा दिखाने के लिए काफी है।
समय जब ट्रेन के डिब्बे में अंधेरा कर सिनेमा की झलक दिखाता है तो दर्शकों के लिए यह पल निर्देशक का कायल बनने का है। दीपेन रावल अपने बेटे को लोगों के सामने फिल्म के दृश्य चलाते देखते हैं। वहां पर कोई बच्चा अपनी छाती पीटकर, कोई सीटी बजाकर उन दृश्यों को आवाज दे रहा होता है। यह दृश्य अद्भुत है।