उरई डॉ राज नारायण अवस्थी प्रबंधक कॉर्पोरेट प्रशिक्षण एवं विकास राजभाषा इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद के उरई जालौन शुभागमन पर संवेदना साहित्य समिति ने पूर्व कमिश्नर समाज व राष्ट्र को समर्पित समाजसेवी श्री शंभू दयाल जी के सहज सदन मेंअभिनंदन एवं काव्य समारोह का आयोजन किया ।

जिसमें उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा संवेदना आत्मा तक पहुंच कर साहित्य के माध्यम से समाज को दिशा दर्शन दे रही है। मैं सहजसदन में सभी साहित्यकारों का अभिनंदन करता हूं ।
कार्यक्रमअध्यक्षता बुंदेलखंड के जाने-माने कवि पंडित यज्ञदत्त त्रिपाठी ने की तथा मुख्य अतिथि माननीय डॉ राजनरण अवस्थी जी रहे ।उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा बुंदेलखंड की पुण्य सलिला धरती की वीरांगनाओं एवं रण बांकुरों ने अनेक बार अपने प्राणों का उत्सर्ग करके इस देवभूमि की आन ,मान मर्यादा की रक्षा की है मैं इस धरती को नमन करता हूं श्रद्धेया डॉक्टर माया सिंह संस्थापिका संवेदना साहित्य समिति का साहित्यिक अवदान अप्रतिम है इनकी साहित्यिक उपलब्धियों पर असीम गर्व है।


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पंडित यज्ञदत्त त्रिपाठी जी ने कहा डॉक्टर माया जी का साहित्यिक समर्पण सराहनीय है और अपनी काव्य पंक्तियों मैं कहा_ जग में जिनके काम बड़े हैं जिनके नाम बड़े हैं।
मर्यादा के रज्जु प्राश में वही अधिक जकड़े हैं समारोह की भव्यता को सराहा।
सुप्रसिद्ध कवयित्री शिखा गर्ग
जी ने पढ़ा_ शांति का नोबेल
पाया है बड़ी शर्मिंदगी
रो रहा इनाम अब तक, आ गया हूं किस गली
श्री प्रेम नारायण दीक्षित ने कहा-तपती धरती का सिंधु सिराने दो
भूखे हैं बेटे मां को दूध पिलाने दो
डॉ माया सिंह माया ने पढ़ा _संवेदना जागी तो फिर सोई नहीं है दर्द पाकर भी कभी राई नहीं है।

लखनऊ से पधारी सुश्री श्रीमती साधना दीक्षित जी ने कविता का अर्थ बताते हुए संवेदनात्मक गीत पढ़ा-
सुख का है पलना, दुख की है डोरी
झूले हैं अरमां बस चोरी चोरी

श्री सुरेश चंद्र त्रिपाठी जी ने पढ़ा

मीत मिलन की तृषा तृप्ति ने कोमल किसलय छंद लिखे हैं
सुस्मृति की धानी चुनर ने मधु मलयज मकरंद लिखे हैं

भिलाई से पधारी नीलम कश्यप जी ने सुंदर काव्य से वातावरण महका दिया_
गीत तुम बन गए
गीतिका हम बने
कृष्ण तुम बन गए,
राधिका हम बने

शिरोमणि सोनी वीणा ने पढ़ा_

घर की शोभा होती है यह बेटियां
तितलियों से उड़ती है यह बेटियां
जालौन से पधारे सुप्रसिद्ध गीतका राघवेंद्र प्रताप सिंह ने पढ़ा
बेटी तुम मत जल जाना आग लगी गलियारों में
प्रेम बड़ी मुश्किल से मिलता रिश्तो के बाजारों में
सुप्रसिद्ध साहित्यकार पुष्पेंद्र पुष्प ने पढ़ा _
पासबानो से ही तंग आने लगे
फूल माली से चेहरा छिपाने लगे

प्रगति मिश्रा ने पढ़ा_अपनी बेटी या बहन सा ही मनाना लोगों
अपने परिवार का ही मुझको जाने ना लोगों
अरुण प्रताप सिंह राजू _ने पढ़ा
मैं किसी की चौखट पर सर झुकाऊ कैसे
मेरा भी स्वाभिमान है सबको रिझाऊं कैसे
इन सभी साहित्यकारों को सुनने लगभग आधा सैकड़ा लोग उपस्थित हुए सभी ने श्रोताओं को मंत्र मुक्त कर दिया।