उरई अध्याय व संस्कार भारती जालौन के प्राच्य विधा के संयुक्त तत्वावधान में श्रीमती सन्ध्या पुरवार के निज निवास पर लैम्प, दीप वीथिका का शुभारम्भ हुआ।
श्रीगणेश जी की प्रतिमा के समक्ष मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय में सह अनुसंधान अधिकारी के रुप में कार्यरत कु0 अंकिता त्रिपाठी ,PCS ने दीप प्रज्वलित कर इस लैम्प दीप वीथिका का शुभारम्भ किया।
वीथिका अवलोकन के समय कु0 अंकिता त्रिपाठी ने कहा कि मुझे अपनी प्राचीन धरोहर से अत्याधिक लगाव है।
मुझे कलात्मक वस्तुयें भी बहुत अच्छी लगतीं हैं। आज इस वीथिका में इंग्लैंड, स्विट्जरलैण्ड , आस्ट्रेलिया आदि देशों के साथ साथ अपने देश की पुरानी लैम्पों को देखकर मन आनन्दित हो गया। गावों में प्रचलित ढिबरी को देखकर अंकिता ने कहा कि मैने इसे प्रयोग किया है तथा मैं अभी इसको जला सकती हूॅ।
वीथिका के विषय में जानकारी देते हुये डा0 हरी मोहन पुरवार ने बतलाया कि कि इस वीथिका में तीन धर्मों का प्रतिनिधित्व करते हुये लैम्प दीप प्रस्तुत किये गये हैं। प्रथमतः सनातन धर्म के दीप प्रदर्शित किये गये।
सनातन धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है जिसका मानना है कि ज्योति से अन्धेरे को मिटाया जाता है। तभी तो कहा जाता है कि तमसो मा ज्योतिर्गमय। इसी प्रकार से अज्ञान रुपी अन्धकार को भी ज्ञान रुपी दीपक के प्रकाश से दूर किया जा सकता है। इसी बात का संदर्भ लेते हुये सनातन धर्म के बाद विश्व में आये दूसरे क्रिश्चियन धर्म ने भी दीपक को अपनाया। चूंकि पाश्चात्य देशों में घी, तेल का अभाव था, अतः उन्होंनें मोम का प्रयोग किया और मोमबत्तियों का प्रचलन प्रारम्भ हो गया। तीसरे नम्बर पर इस्लाम आया और चिराग का चलन शुरु हो गया।
अलादीन का चिराग तो ख्याति प्राप्त हो गया।
वीथिका प्रस्तोता श्रीमती सन्ध्या पुरवार ने बतलाया कि इस वीथिका में प्रथम पूज्य श्रीगणेश जी से जुडे 20 प्रकार के,अपने राष्ट्रीय पक्षी आधारित पीतल के लगभग 30 विभिन्न प्रकार के तथा अन्य प्रकार के तमाम दीपक, गैस लालटेन, विद्युत लैम्पस् , विभिन्न आकार प्रकार के की दीपक और लगभग 20 प्रकार के कैन्डिल स्टैन्डस् तथा अलादीन चिरागों के साथ मजलिस के चिराग का भी प्रदर्शन किया गया है।
इस वीथिका में प्रस्तुत समस्त सामग्री श्री मती सन्ध्या पुरवार व डा0 हरी मोहन पुरवार के निजी संग्रह से प्रस्तुत की गई।
अन्त में सन्ध्या पुरवार ने कु0 अंकिताजी को स्मृति चिन्ह प्रदान किया।
इस अवसर पर कु0 काजल राजपूत श्रीमती प्रियन्का अग्रवाल, राहुल पाटकर, संस्कार भारती की लोक कला विधा प्रमुख श्रीमती ऊषा सिंह निरंजन श्रीनगर ,उत्तराखंड से आये अभिषेक पुरवार, श्रीमती नूपुर ,कु0 अनुश्री व अनुराज का विशेष योगदान रहा।