उत्तर प्रदेश में ग्राम प्रधान/पंचायत चुनाव की धूम मची है। बीते दिनों आरक्षण की सूची आते ही बहुत से उम्मीदवारो के चेहरों पर मायूसी तो बहुतों के चेहरे पर कुटिल मुस्कान देखी जा रही है।

उक्त चुनाव में हर सक्षम व्यक्ति भागीदारी करने को तत्पर है।

लेकिन आरक्षण का डंडा चलते ही बहुत से उम्मीदवारो को मानसिक चोट पहुंची है। तो किसी को हार्दिक प्रसन्नता का बोध हो रहा है। इस समय गाँव गांव में प्रधानी/पंचायत सदस्य के चुनावों की ही चर्चा हो रही है । चर्चा होना सहज है और लोकतंत्र के लिए आवश्यक भी है । लेकिन चर्चा विकास की न होकर जातिगत आकड़ों पर हो रही है जो न लोकतंत्र के हित में और न विकास के रास्ते के लिए सही है। बीते 5 वर्षों में कितना विकास हुआ है इसका आकलन खुद ग्रामवासियों को करना चाहिए क्यों आज भी विकास गति उतनी नही है जितनी ज़रूरी है। हालांकि सरकार ने अंतोदय तक लाभ पहुंचाने के लिए योजनाएं देने में कोई कसर नही छोड़ी लेकिन सरकारों की योजनाओं को संचालित करने वालों ने अपनी तिजोरियां भरी ली और योजना का लाभ उपयुक्त व्यक्ति तक नहीं पहुचा सका इसमे सरकार की नीति नही वोटरों के जातिगत वोट देने की प्रवत्ति जिम्मेदार है।
पिछले कुछ दशकों से पंचायत चुनाव कमाई का बड़ा साधन बना हुआ है । चुनाव जीतने के बाद जिस तरह से पंचायत सदस्य को खरीदने की मंडी लगती है वो किसी से छुपी नही है। नेताओ की इस चाल को ग्रामीण समझ नही पाते और जातिगत वोटो में बटकर पंचायत सदस्य बनाया देते है। वो सदस्य जिलापंचायत अध्यक्ष चुनने में क्या गुल खिलाते सबके सामने है। सूचना का अभाव विकास के दरवाजे बंद कर देता है यही कारण है कि उनके साथ किस तरह का छल हुआ ग्रामीण वोटरों को गुमान तक नही हो पाता। ऐसे लोग ग्रामीण भारत को कैसे अच्छा बनाएंगे समझा जा सकता है। इसलिए जरूरत है ग्रामीण वोटरों में इक्षाशक्ति की पैदा करने की , अच्छी और विकासवाद की सोच जो कि जातिवाद के बंधन से मुक्त हो । सरकार द्वारा दिये गए संसाधनों की कमी नहीं है। सरकार की योजनाये दिल्ली चलती और गांव तक आते आते दम तोड़ देती है। ऐसा इसलिए होता है कि हमारा ग्रामीण वोटर जागरूक नही है। उसकी जागरूकता आज भी कोटेदार से शुरू होती है ग्रामप्रधान की शिकायतों पर समाप्त हो जाती है। उनको सरकारी योजनाओं की जानकारी हो नही पाती और 5 साल बाद वह अपने आप को वही पाता है जहां वह 5 वर्ष पहले खड़ा था।
जातिगत मानसिकता से ऊपर उठकर ग्रामीण स्तर के वोटरों को जागरूक और संघठित होने की जरूरत है | शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, रोजगार, ,पानी बिजली,खाद और सामाजिक उत्थान ये वो विषय हैं जिनके सम्बन्ध में आज ज़िम्मेदार ग्रामणों को सबसे अधिक सोचने की आवश्यकता है | ग्रामीण समाज जितना ज्यादा अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होगा उतना ही प्रगतिशील भी । ग्रामीण भारत को अपने ऊपर लगे पिछड़ा,अशिक्षित जैसे बदनुमा दाग को धो डालने की आवश्यकता है।
चुनाव में वोट देने से पहले खाद,बिजली,पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क, ग्राम उत्थान के जो उम्मीदवार सक्षम हो उसे जातिवादी मानसिकता से हटकर ग्रामप्रधान/पंचायत सदस्य बनाना चाहिए। जिससे दिल्ली से चला विकास रास्ता न भटके और समाज के आखरी व्यक्ति उससे लाभान्वित हो।

 

रिपोर्ट-अमित कुमार जनपद जालौन।