रोक लो बढते कदम

रोक लो बढते कदम रोको कत्ले-आम ,
देख कर इन्सान रोया दे रहा पैगाम।
चिता जलानी है तो नफरत की जलाओ ,
जीती जागती इंसानियत ना जलाओ।
सोच लो जरा सोच लो क्या होगा अंजाम,
रोक लो बढते कदम रोको कत्ले-आम ।
होली खेलनी है तो रंग प्यार के डालो ,
रंग की जगह तुम लहू ना बहाओ।
एकता देश प्रेम का फैलाओ पैगाम,
रोक लो बढते कदम रोको कत्ले-आम।
बनना है तो गांधी ,नेहरु,सुभाष बन जाओ,
आतंकवाद और हैवनियत ना फैलाओ।
गले मिलो और पीयो खुशिओं के जाम,
रोक लो बढते कदम रोको कत्ले-आम,
देखकर इन्सान रोया दे रहा पैगाम।
लेखक-ईश्वरलाल चौहान ,मुम्बई