वाराणसी। स्याही प्रकाशन द्वारा प्रकाशित बहुप्रतीक्षित पुस्तक ‘भटकटया के फूल’ का लोकार्पण शनिवार 11 दिसम्बर 2021 को खोजवा स्थित ख्यात 100 वर्ष पुरानी लाइब्रेरी में हुआ। यह पुस्तक वाराणसी के गीत विधा के मशहूर गीतकार सूर्य प्रकाश मिश्र ने लिखी है। प्रकाशक, संपादक व साहित्यकार छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ के अनुसार पुस्तक भजकटया के फूल ग्राम्यबिंब को समेटे हुए एक अनोखी किताब है। जिसमें गांव व गरीबी के अनेक विषय व बिंब समेटे व सहेजे गए हैं। श्री मिश्र ने बहुत ही करीने से अपने एक एक गीत में गांव, आम आदमी, गरीबी व जीवन की अनेक संवेदनाओं को सहेजा है।


कार्यक्रम में बतौर अध्यक्ष पंडित हरिराम द्विवेदी, मुख्य अतिथि के रुप में डा. जितेंद्रनाथ मिश्र, बतौर विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी ओम धीरज, पुस्तकालयाध्यक्ष कंचन सिंह परिहार एवं पूवांचल प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार राजीव ओझा तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष हृदय रंजन शर्मा मौजूद रहे।
पुस्तक के लोकार्पण के बाद लेखकीय वक्तव्य में कवि श्री सूर्य प्रकाश मिश्र ने अपनी तीन रचनाएं पढ़ी। जिसमें ‘हमने कुछ गीत लिखे हैं दिल से, जब भी हो मन उदास पढ़ लेना’ व ‘कविता तुम पत्थर मत बनना, चुप रहकर ईश्वर मत बनना’ काफी सराही गई। अपने आतिथ्य वक्तव्य में डा. जितेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि पुस्तक के लेखक जैसे हैं वैसा ही लिखे हैं, और जैसा लिखे हैं वैसे ही हैं। लेखक और उसकी लेखनी में कोई भेद नहीं है। ग्राम की संवेदना लेखक की संवेदनशीलता के भाव से मेल खाती है। कार्यक्रम में अध्यक्ष पंडित हरिराम द्विवेदी ने मां को केंद्र में रखकर एक भोजपुरी गीत पढ़ा। कार्यक्रम में शहर व बाहर के अनेक शायर कवि व गीतकार मौजूद थे। स्वागत व धन्यवाद ज्ञापन प्रकाशक व साहित्यकार छतिश दिवेदी कुंठित ने किया। उन्होंने अपने एक मुक्तक से सभा को समाप्त करते हुए आभार प्रकट किया-
निज जीवन में धूप, तुम्हारी छांव प्रकाशित कर देता हूं,
आंसू में स्याही मिलवाकर घाव प्रकाशित कर देता हूं,
तुमने जब भी सौंप दिया है जीवन का अहसास मुझे
तेरे रोते-मुस्काते हर भाव प्रकाशित कर देता हूं!

उक्त कार्यक्रम में शहर की ख्यात् संथा ‘उद्गार’ संगठन द्वारा कवि सूर्य प्रकाश मिश्र के साहित्यिक योगदान को देखते हुए कवि के नाम पर ‘उद्गार साहित्य सूर्य’ सम्मान की घोषणा की गई एवं काशी के साहित्यकार व कवि सुनील कुमार सेठ को प्रथम बार यह पुरस्कार प्रदान किया गया। संस्था की ओर से बोलते हुए छतिश द्विवेदी कुंठित ने बताया कि यह पुरस्कार उस व्यक्ति को दिया जायेगा जिस व्यक्ति को समाज या सरकार द्वारा उसके कार्यों के सही मूल्यांकन से वंचित किया जाएगा। श्री कुंठित द्वारा बताया गया कि आदरणीय सूर्य प्रकाश मिश्र पर शुरू किया गया यह पुरस्कार हर उस व्यक्ति को आवधिक रूप में प्रदान किया जाएगा जो अपनी रचनाओं के तमाम साहित्यिक योगदान के बाद भी सही मूल्यांकन के दोहरे मापदंड में पिछड़ रहा हो। या जिसे हमारा समाज अपने दोहरे मानदंड से नजरअंदाज कर रहा हो।
उल्लेखनीय है कि इस पुरस्कार की घोषणा के समय स्वनामधन्य सम्मान से आदरणीय सूर्यप्रकाश मिश्र को भी सम्मानित किया गया। यहां पर पाठकों को यह बताना ज्यादा श्रेयस्कर है की देश का यह पहला वाकया है जब किसी जीवित लेखक को स्वनामधन्य सम्मान से सम्मानित किया गया हो और उसके जीवित रहते ही उसके कृतियों से प्रभावित होकर किसी संस्था ने उसके नाम से किसी साहित्यिक सम्मान की घोषणा की हो। और उसकी मौजूदगी में ही उसके समक्ष एक प्रतिभाशाली कवि को यह पुरस्कार दिया गया हो। इस विशेषता के कारण शहर भर में यह पुरस्कार साहित्यकारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।