महोबा। बुंदेली लोक संस्कृति का अपना अलग ही महत्व है। दीपावली के पावन पर्व पर यहां के कलाकार अद्भुत कला का प्रदर्शन करते हैं। दिवारी नृत्य व पाई डंडा की प्रस्तुति के दौरान दो पक्षों में लाठियों की तड़तड़ाहट सुनाई देती है लेकिन किसी को खरोच भी नहीं आती। इस अनूठी कला में 10 वर्ष के बालक से लेकर 60 वर्ष के वृद्घ भी लाठियां चलाते नजर आते हैं।दिवाली पर्व को जैतपुर क्षेत्र में 15 से अधिक ग्रामों व सार्वजनिक स्थलों पर दिवारी नृत्य का आयोजन किया गया । जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ जुटी रही । दिवारी नृत्य में पारंगत कलाकारों ने अपनी अनूठी कला का प्रदर्शन किया । अलग-अलग टोलियों ने विभिन्न मंदिरों का भ्रमण किया । कलाकारों द्वारा एक दूसरे पर लाठी चलाने और बचाव करने का अंदाज देखते ही बनता था । दिवारी नृत्य के दौरान ढोलक व मजीरा की आवाज से रिश्तों में मिठास घुल जाती है।


इतिहासकार डा. एलसी अनुरागी बताते हैं कि जब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उंगली में उठाया था तो सारे गोकुलवासी पहाड़ के नीचे रहे। अपनी-अपनी लाठी डंडों से पहाड़ टेके रहे। आठ दिन बाद जब बारिश बंद हुई तो दिवारी नृत्य का प्रदर्शन किया गया। भगवान कृष्ण की 16 कलाओं में से एक नृत्य कला यह भी है। इससे भगवान कृष्ण की अराधना योग के द्वारा हो जाती है और शरीर निरोगी रहता है। दिवारी नृत्य का उद्देश्य यह भी है कि युवा लाठी चलाना सीखे
इस अनूठी विधा का पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति भी कर दीदार चुके हैं बुंदेलखंड की अनूठी परंपरा दिवारी नृत्य व पाई डंडा की प्रस्तुति का दीदार पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी कर चुके हैं। 24 फरवरी 2020 को अमेरिकी राष्ट्रपति जब भारत के दौरे पर आए थे। आगरा में उनके स्वागत के लिए संस्कृति निदेशालय लखनऊ ने जिले के लखनलाल यादव एंड पार्टी को दिवारी नृत्य व पाई डंडा के लिए आमंत्रित किया गया था। जहां कलाकारों ने बुंदेली लोक कला का प्रदर्शन किया था। जिसकी जमकर सराहना हुई थी। 13 नवंबर को अयोध्या में होने वाले दीपोत्सव कार्यक्रम में भी यहां के कलाकारों को दिवारी नृत्य के लिए आमंत्रित किया गया था ।


मोरपंखों के साथ प्रदर्शन करते हैं मोनिया दिवाली पर्व दिवारी नृत्य के साथ मोनिया मोरपंखों के साथ प्रदर्शन करते हैं। सुबह से ही मोनिया गाय की पूजा करने के बाद हाथों में मोर पंख लेकर निकल पड़ते हैं और पांच से सात गांव का भ्रमण करते हैं। इस दौरान पड़ने वाले मंदिरों के दर्शन कर प्रसाद चढ़ाते हैं। पूरे दिन मोनिया मौन व्रत रखकर पूजा अर्चना करते हैं। जिससे परेवा के दिन जिले के सभी मंदिर मोनियों की आवाजाही से गुलजार रहेंगे।
दिवारी गीत दिवाली के दूसरे दिन उस समय गाये जाते हें जब मोनिया मौन व्रत रख कर गाँव- गाँव में घूमते हें । दीपावली के पूजन के बाद मध्य रात्रि में मोनिया -व्रत शुरू हो जाता है । गाँव के किसान और पशु पालक तालाब नदी में नहा कर , सज-धज कर मौन व्रत लेते हें । इसी कारण इन्हे मोनिया भी कहा जाता है ।द्वापर युग से यह परम्परा चली आ रही है , इसमें विपत्तियों को दूर करने के लिए ग्वाले मौन रहने का कठिन व्रत रखते हैं। यह मौन व्रत बारह वर्ष तक रखना पड़ता है। इस दौरान मांस मदिरा का सेवन वर्जित रहता है । तेरहवें वर्ष में मथुरा व वृंदावन जाकर यमुना नदी के तट पर पूजन कर व्रत तोड़ना पड़ता है।शुरुआत में पांच मोर पंख लेने पड़ते हैं प्रतिवर्ष पांच-पांच पंख जुड़ते रहते हैं। इस प्रकार उनके मुट्ठे में बारह वर्ष में साठ मोर पंखों का जोड़ इकट्ठा हो जाता है। परम्परा के अनुसार पूजन कर पूरे नगर में ढोल,नगड़िया की थाप पर दीवारी गाते, नृत्ये करते हुए हुए अपने गंतव्य को जाते हैं। इसमें एक गायक ही लोक परम्पराओं के गीत और भजन गाता है और उसी पर दल के सदस्य नृत्य करते हैं
रिपोर्ट SONI news