अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड द्वारा शुरू की गई “वी0के0एस0 चौधरी स्मृति व्याख्यान माला ” के दूसरे व्यख्यान में आज वरिष्ठ अधिवक्ता श्री रमाकान्त ओझा जी पूर्व अध्यक्ष हाइकोर्ट बार एसोसिएशन उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के द्वारा संविधान में रिट क्षेत्राधिकार विषय पर सजीव प्रसारण में बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 में माननीय उच्चतम न्यायालय व अनुच्छेद 226 में माननीय उच्च न्यायालय में रिट वर्णीत है जिसका सीधे सरल शब्दों में अर्थ है कि किसी भी न्यायलय द्वारा किसी व्यक्ति को लिखित आदेश देना कि वह यह कार्य कर सकता है और यह नही। रिट एक लैटिन भाषा का शब्द है। हमारे संविधान में रिट का वही महत्व है जो शरीर में आत्मा का यदि उसमे से रिट को निकाल दे तो हमारा संविधान एक तरह से पंगु ही हो जाएगा , रिट पाँच प्रकार की होती है जिनके माध्यम से आम जनता के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा होती है व राज्य अपने कर्तव्य का पालन करने को बाध्य होता है।
जब राज्य सरकार हमारे संवैधानिक अधिकारों का हनन करती है तो हम अनुच्छेद 32में उच्चतम न्यायालय में और अनुच्छेद 226 में राज्य सरकार के अलावा सामान्य नागरिक द्वारा किये गए अधिकारों के हनन के लिए जाएंगे।
जिस प्रकार भगवान ब्रह्मा,विष्णु,महेश एक दूसरे के पूरक है कोई विरोधाभास नही आपस में उसी प्रकार उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय में भी इन रिट्स के क्षेत्राधिकार को लेकर कोई विरोधाभास नही है संविधान में सब के अधिकार अलग अलग वर्णित हैं व सब उस सीमा का पालन करते हैं।

स्वतंत्रता से पूर्व भारत में कलकत्ता, बम्बई व चैन्नई उच्च न्यायालय में ही रिट होती थी और वह केवल अपने क्षेत्राधिकार में ही उन्हें सुनती थी न कि पूरे भारत में परन्तु आज़ादी के बाद सभी उच्च न्यायालय में यह शक्ति निहित हुई व न्याय जनता के और निकट पहुचा। कानून हमेशा चलायमान होता है और हम अधिवक्ताओं को कानून के उल्लंघन होने पर समाज के प्रति सजग होकर कार्य करना चाहिए क्योकि संविधान की आत्मा रहेगी तो भारत की आत्मा रहेगी।राधाकान्त ओझा जी ने अनेक न्यायिक निर्णयों पर भी इनके सम्बन्ध में प्रकाश डाला।
कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से22हज़ार से अधिक लोगों ने ऑनलाइन प्रतिभाग किया।कार्यक्रम में प्रमुख रूप से अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश के कार्यकारी प्रदेश महामंत्री अश्वनी कुमार त्रिपाठी,सुनीता सिंह,बृजबिहारी गुप्ता,शिवदास पांडेय,अजय सोनी हेमराज सिंह, राजेन्द्र जी, घनश्याम किशोर जी , ज्योति मिश्रा, पवन तिवारी,अनिल दीक्षित,देवालय, ज्योति राव, उमाशंकर गुप्ता,सुशील शुक्ला,देव नारायण,आशीष शुक्ला ,राजीव,संजय, श्याम नारायण,संगीता गुप्ता,प्रशांत शुक्ल, ज्ञानेश्वर,आदि अधिवक्ताओं की उपस्थित रही।