जगम्मनपुर, जालौन। पृथ्वी पर जब-जब पापाचार दुराचार बढ़ता है और धर्म की हानि होने लगती है तब अपने भक्तों व धर्म की रक्षा के लिए भगवान स्वयं जन्म लेकर दुष्ट पापियों का नाश करके पृथ्वी पर पुनः धर्म की स्थापना करते हैं।
पंचनद संगम पर श्री बाबा साहब मंदिर परिसर में चल रहे शतचंडी महायज्ञ व श्रीमद् भागवत महापुराण नौ दिवसीय ज्ञानयज्ञ में श्रीमद्भागवत कथा व्यास शशिभूषण दास जी (कामतानाथ मंदिर चित्रकूट धाम) ने भगवान के 24 अवतारों की कथा में उनके के कारण और उपयोगिता का विस्तृत वर्णन किया उन्होंने बताया कि सनतकुमार का अवतार ब्राह्मणों की सृष्टि के लिए एवं वराह भगवान का अवतार पृथ्वी के उद्धार के लिए। यज्ञ पुरुष का अवतार स्वयंभुव मन्वंतर के पालन के लिए तथा भगवान ह्यग्रीव का अवतार वेदों का हरण करने वाले मधुकैटव का वध करने के लिए और नर-नारायण का अवतार बुद्धि शांति, तपश्चर्या के विधान के लिए व कपिल भगवान का अवतार सांख्य शास्त्र की रचना के लिए तथा दत्तात्रेय का अवतार मुमुक्षु जनों के आत्मज्ञान के लिए एवं भगवान ऋषभदेव का अवतार परमहंसों को सुमार्ग दिखाने के लिए और पृथु का अवतार औषधि अन्न आदि की उत्पत्ति के लिए तथा मत्स्यावतार वैवस्वत मनु की रक्षा के लिए व कच्छप भगवान का अवतार समुद्र मंथन के समय देवों की रक्षा के लिए एवं मोहिनी का अवतार देवताओं को अमृत पिलाने के लिए तथा नृसिंह भगवान का अवतार भक्त प्रह्लाद की रक्षा और हिरण्यकशिपु के वध के लिए एवं भगवान वामन का अवतार दैत्यराज बलि के दर्पदलन के लिए व हंस का अवतार सनतकुमार आदि को ज्ञान का उपदेश देने के लिए तथा नारद का अवतार कर्म बंधन से मुक्ति दिलाने वाले पांचरात्र शास्त्र की रचना के लिए और श्रीहरि का अवतार गजराज को ग्राह के फंदे से छुड़ाने के लिए , भगवान परशुराम का अवतार धर्म व ब्राह्मण द्रोही हैहय वंशीय क्षत्रियों के विनाश के लिए तथा भगवान राम का अवतार राक्षसों के विनाश के लिए व भगवान वेदव्यास का अवतार पुराणों की रचना के लिए एवं भगवान श्रीकृष्ण का अवतार पृथ्वी का भार हल्का करने प्रेम व कर्मयोग का संदेश देने के लिए , बुद्ध भगवान का अवतार हिंसा की प्रवृत्ति को नष्ट करने हेतु हुआ है व भविष्य पुराण के अनुसार भगवान का 24वां कल्कि अवतार उप्र के संभल में उस समय होगा जब पृथ्वी पापाचार से कराह रही होगी तब धर्म की पुनः स्थापना के लिए भगवान पृथ्वी पर कल्की भगवान के रूप में अवतार लेकर दुष्ट और पापियों का नाश करेंगे।
कथा व्यास महाराज शशिभूषण ने बताया कि जिस तरह हमेशा स्रोतवान सरोवर से असंख्य नदियां निकलती हैं, उसी प्रकार समय समय पर भगवान विष्णु के अवतार होते हैं। जब-जब धर्म के विलुप्त होने का भय होता है, तब-तब भगवान् विष्णु अवतार लेते हैं। भगवान की लीला अनंत है। तत्त्व ज्ञान के बिना व्यक्ति उस लीला को नहीं समझ सकता। भक्त प्रभु की ही कृपा से तत्त्व ज्ञान प्राप्त करता है और भगवान् का रहस्य जानकर भक्ति को प्राप्त होता है।
एक अन्य प्रसंग का वर्णन करते हुए कथा व्यास ने बताया कि एक बार शौनक जी ने सूतजी से श्रीमद् भागवत् के विषय में कुछ प्रश्न किए कि श्रीमद् भागवत् की रचना किस युग में और किस प्रयोजन से हुई?
तब सूतजी ने उत्तर दिया कि कलियुग के पृथ्वी पर पूरी तरह से उतर जाने के बाद विषम परिस्थितियों के कारण युगधर्म के खण्डित होने की संभावना से चिंतित भगवान् विष्णु के अंशावतार वेदव्यासजी ने पहले तो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना की – वेद को चार भागों में विभाजित किया। फिर पांचवे महाभारत की रचना की।Screenshot 2025 06 08 15 43 35 99

वे एक दिन खिन्नमना होकर सरस्वती नदी के तट बैठे थे उसी समय नारदजी आए। नारदजी ने उन्हें बताया कि उनका मन इसलिए प्रसन्न नहीं है कि उन्होंने भगवान् के निर्मल चरित्र को गाया नहीं।नारदजी ने कहा भगवान विष्णु की भक्ति और महिमा से हीन काव्य निरर्थक है अतः आप विष्णु को आधार बनाकर रचना कीजिए इससे विश्व का कल्याण होगा और आपको आत्मानंद की प्राप्ति होगी।

 

रिपोर्ट- अमित कुमार पत्रकार उरई जनपद जालौन उत्तर प्रदेश।