
भाेपाल। किसी भी संकट का समाधान करने कोई और नहीं आएगा। कष्ट तो होते हैं, लेकिन उसका समाधान हमें ही करना हाेगा। आने वाले समय में कुछ संकट है, जिनके समाधान की ओर हम आगे बढ़ रहे हैं। समाधान हमारे विश्वविद्याल काे देना है,हमारे शिक्षा के मंदिराें विद्यालयों काे देना है और हम उसकी ओर आगे बढ़ रहे है। यह बात उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने शुक्रवार काे भाेपाल के रविन्द्र भवन में परमार्थ समाजसेवी संस्था और समर्थन संस्था द्वारा जल संरक्षण के प्रति जागरुकता के लिए आयाेजित दाे दिवसीय वाटर फाॅर आल, आल फाॅर वाटर कार्यक्रम में कही। इस दाैरान मंत्री परमार ने हिन्दुस्थान समाचार की मासिक पत्रिका “नवाेत्थान” के जल विशेषांक का विमाेचन भी किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि भारत जैसे देश में शुद्ध जल उपलब्ध कराना अलग बात है, लेकिन जल का संरक्षण करना बहुत बड़ी चुनौती है और यह चुनौती इस रूप में है कि हमारे पूर्वजों ने जल का संरक्षण करने का मंत्र दिया था, वह हम भूल गए हैं। इस वजह से दूसरे संकट सामने दिखने लगे हैं और इसलिए फिर से जन जागरण करना, लोगों को जल संरक्षण के तरीका बताना, यह केवल सरकार की ही नहीं बल्कि हर सामाजिक संगठन और हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। मंत्री परमार ने कहा कि जल संरक्षण के लिए कुछ ना कुछ प्रयास करें। जो लोग काम में लगे है उनकी गति बहुत ही धीमी है, लेकिन आप जैसे संगठनों ने जो जन जागरण का जिम्मा उठाया है इससे निश्चित रूप से समाज में जागृति आएगी।
मंत्री परमार ने कहा कि आज पानी जमीन में नहीं जा रहा है। पानी जमीन में जाने का सबसे बड़ा माध्यम वृक्ष है और वृक्ष को भी बड़े पैमाने पर काटने का काम हो रहा है। आज हम करोड़ की संख्या में वृक्षारोपण कर रहे हैं लेकिन उतनी ही मात्रा में काटने वाले भी सक्रिय होते हैं, जिसके कारण स्थिति जैसी है वैसी ही रहती है, इसलिए पानी को बचाने के लिए वृक्षाें का जिंदा रहना बहुत जरूरी है। मंत्री परमार ने कहा कि जल संरक्षण के प्रति लोगों में जागृति आ रही है। जागृति लाने वाले लोग शुरू में कम होते हैं लेकिन धीरे-धीरे करवा बढ़ता जाता है। आपका भी प्रयास जरुर सफल होगा और जब भी जल संरक्षण की बात होगी तो उसमें आपकी चर्चा जरूर होगी।
इस दौरान उच्च शिक्षा मंत्री का कहना यह भी रहा कि आने वाले समय में पानी का सदुपयाेग करने और उसे अनावश्यक खर्च करने में भी अनुशासन हाेगा। यह काम ज्यादा जरूरी है। पानी का उपयाेग कैसे करना है यह भी बड़ा प्रश्न है। आपकी संस्था केवल ग्रामीण ही नहीं शहरी संस्था में जागरुकता लेकर आएगी। पानी लाइट का कितना उपयाेग करना है यह साेचना पड़ेगा वृक्षाराेपणपर भी ध्यान देना हाेगा।
उन्होंने कहा, पानी का एक एक बूंद हमारे लिए महत्वपूर्ण है यह संदेश आप जन जन तक पहुंचा सकेंगे यह मेरी शुभकामनाएं है।
इसके साथ ही मंत्री श्री परमार ने यहां बुंदेलखंड के अनेक जिलों से आए उन तमाम छोटे-छोटे नन्हे बच्चों के द्वारा जल पर तैयार की गई प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया, जिसे इन बच्चों ने गुरुवार शाम राजधानी भोपाल आकर आज सुबह तक तैयार किया था और हर चित्र के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया कि कैसे हम पानी की एक-एक बूँद को सहज सकते हैं और जल का संरक्षण कर सकते हैं।
इस दौरान मंत्री परमार इन बच्चों के बीच उनकी पढ़ाई और उनके अनुभवों को भी जानते-सुनते नजर आए। अनेक बच्चों ने अपने गांव की परिस्थितियों के बीच पानी की कमी और उसे सहेजने के लिए उनके अंदर पैदा हुई प्रेरणा के बारे में बताया। वहीं बच्चे भी मंत्री को अपने पास पाकर उनसे बात करते हुए बहुत आनंद ले रहे थे।
उल्लेखनीय है कि विवा कॉन अगुआ डे सेंट पॉल ईवी जर्मनी के हैम्बर्ग में सेंट पॉल शहर जिले का एक गैर-लाभकारी संगठन है। एसोसिएशन का उद्देश्य जरूरतमंद देशों में लोगों को पेयजल और स्वच्छता की सुविधा उपलब्ध कराना है। संगठन द्वारा मप्र में परमार्थ समाजसेवी संस्था और समर्थन संस्था के साथ मिलकर पन्ना, छतरपुर और निवाड़ी में पेयजल और स्वच्छताके क्षेत्र में काम किया जा रहा है। इसी क्रम में राजधानी भाेपाल में 28-29 मार्च काे दाे दिवसीय “जल महोत्सव” जागरुकता कार्यक्रम का आयाेजन किया जा रहा है। जिसमें संस्था से जुड़े बच्चाें द्वारा बनाए गए पाेस्टराें की प्रदर्शनी लगाई गई है। इसके अलावा दाे दिनाें तक अलग अलग सत्राें में गतिविधियां आयाेजित की जाएगी। जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक लाेगाें काे अपने साथ जाेड़कर जल संरक्षण और स्वच्छता के प्रति लाेगाें काे जागरुक करना है। कार्यक्रम में पहले दिन विभिन्न सत्रों में परमार्थ संस्था के संस्थापक संजय सिंह, समर्थन की ओर से डॉ. योगेश कुमार, हिंदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी से वरिष्ठ पत्रकार डॉ. मयंक चतुर्वेदी, सेवानिवृत्त आईपीएस अनुराधा शंकर, बालमि मैनेजमेंट डायरेक्टर, सरिता बाला बालाओम प्रजापति, स्मिता नामदेव एवं अन्य विद्वानों ने अपने विचार रखे एवं जल-जीवन पर अपने प्रस्तुतियाँ दीं।
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