जालौन-असल मे दान का कोई समय निश्चित नही है।सर्दी,गर्मी,बरसात हर समय निर्धन,लाचार,लावारिस,की मद्दत करनी चाहिए ये पुण्य का कार्य है जो दुनिया का हर धर्म कहता है।

सर्दी चल रही है निर्धन और लाचार लोगो की मद्दत के लिए दानदाता रात को सूनी सड़को पर कम्बल लेकर निकलते है। गरीब मिला उसके कंधे पर कम्बल डाला और फ़ोटो खिंचवाई। दूसरे दिन कोशिश करके अखबार में News with photo लगवा दी। व्हाट्सअप,फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशलमीडिया के द्वारा अपने किये कृत को आम लोगो तक पहुचते है।

ये देखने के बाद एक पौराणिक कथा याद आ गई।
दान देने में अर्जुन भी बहुत आगे थे लेकिन उनके आगे कभी दानवीर नही लगा एक बार अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा कि कर्ण को दानवीर कर्ण क्यों कहा जाता है ? मुझे अच्छा नही लगता। अर्जुन को जवाब देने के लिए श्री कृष्ण ने दो सोने के पर्वत मंगवाए और अर्जुन से बोले कि इनको निर्धनों में बांट दो अर्जुन ने गांव वालों को पर्वतों के पास आने के लिए कहा और सोना बांटना शुरू कर दिया बांटते बांटते अर्जुन थक गए अर्जुन ने कहा कि अब मुझे आराम करना है मैं थक गया हूं तब श्री कृष्ण कहा कि तुम आराम करो और देखो । श्री कृष्णा ने कर्ण को बुलाया और कर्ण से कहा यह दोनों सोने के पर्वतों को निर्धनों में बांट दो आदेश होते ही कर्ण ने गांव वालों से कहा यह दो सोने के पर्वत तुम लोगों के है जैसी ज़रूरत हो वैसे आपस मे बांट लो। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा जब तुम बांट रहे थे तुम्हारे अंदर अहम था तुम दिखावा कर रहे थे जिससे निर्धन लज्जित हो रहे थे। दूसरी तरफ कर्ण से जब बाँटने के लिए कहा गया तो उसने कहा कि ये तुम्हारा है तुम ले जाओ उस समय कर्ण के अंदर न अहम था न किसी गरीब को लज्जित करने का इरादा इसलिए उसे दांनवीर कर्ण कहा गया है।


इसलिए दिखावा नही कर्तव्यों का निर्वहन निष्पक्ष और निर्मिल ह्रदय से करना चाहिए।
दान करके दिखावा करने की प्रवर्ति को धार्मिक और सामाजिक तो नही कह सकते लेकिन स्वंय दिखावा करने की प्रवर्ति साफ झलकती है ।
पिछले दिनों रेलवे स्टेशन पर ऐसा ही नजारा देखने को मिला । कुछ दानकर्ता निर्धनों को तलाशते आये। समय अधिक हो गया था ठंड भी ज़्यादा थी इसलिए भीड़ कम थी बहुत कोशिश के बाद एक महिला मिली उसके कंधे पर कम्बल रखा फिर शुरू हो गया फ़ोटो सेशन उसी समय एक ट्रेन का आगमन हुआ यात्री बाहर निकल रहे थे और सब की निगाह उन दान दाताओ पर जा रही थी जो गरीब को एक कम्बल देकर उसके साथ फोटो खिंचवा रहे थे। कम्बल खामोशी से भी दिया जा सकता था इसमे उस गरीब का स्वाभिमान बच जाता और आप का पुण्य कार्य भी हो जाता।
आखिर हम लोग कब तक गरीबो की गरीबी का मज़ाक बनाते रहेंगे। समय का फेर है वर्ना कोई नही चाहता के आस्थाई रैन बसेरे में रात गुज़ारे, कम्बल लेने की लाईन में लगे और कम्बल लेते सुबह अपनी फ़ोटो अखबार में देखे। ये अधिकार हमलोगों को किसने दिया कि किसी की लाचारी को भरे बाज़ार नीलाम करें।


दान करिये लेकिन दान करने वाले और दान लेने वालों के बीच अन्य लोगो का पर्दा भी ज़रूरी है। गुप्तदान और सिर्फ गुप्तदान से पुण्य मिलता है दिखावे से नही। क्यों कि दान तो अर्जुन भी करते थे और कर्ण भी अर्जुन कृष्ण के निकट होने के बावजूद पुण्य नही कमा सके लेकिन कर्ण दूर होकर भी गुप्त दान करके पुण्य के हकदार बने।
कही ऐसा तो नही कि दिखावा करके हम पुण्य की जगह पाप कमा रहे है।